रश्मिरथी केवल एक योद्धा की कथा नहीं है, बल्कि एक ऐसे पुरुष की जीवनगाथा है जिसे युगों ने नहीं समझा, पर जिसकी मर्यादा, दान और धर्म ने उसे अमर बना दिया। दिनकर की लेखनी में साक्षात अग्नि है, और इस काव्य में उसका महाप्रकाश।
आपके लिए रश्मिरथी खण्डकाव्य के सभी सर्ग इस पेज पर दिए गए हैं। सबसे पहले रश्मिरथी खण्डकाव्य के बारे में कुछ संक्षिप्त जानकारी है। फिर नीचे दिए गए लिंकों के माध्यम से आप Rashmirathi Full Poem या फिर कहें की Rashmirathi Lyrics को पढ़ पाएंगे।
रश्मिरथी के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
📌काव्य | रश्मिरथी |
📁कुल सर्ग | सात |
✍️रचयिता | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ |
🏷️प्रकार | खण्डकाव्य |
🗓️प्रकाशन वर्ष | सन् 1952 |
“रश्मिरथी” रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित एक प्रसिद्ध खंड काव्य है। यह महाभारत के महान योद्धा कर्ण के जीवन पर आधारित है। इस काव्य में कर्ण के जन्म से लेकर उनके युद्ध और वीरगति तक की गाथा को बड़े ओजपूर्ण और भावनात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें कर्ण की महानता, दानवीरता, समाज द्वारा उनके साथ किए गए अन्याय, और अंत में उनकी त्रासदीपूर्ण मृत्यु को दिखाया गया है।
कुल सात सर्ग वाले इस खण्डकाव्य का प्रकाशन सन् 1952 में पहली बार किया गया था, जिसमें महाभारत काल के एक महान योद्धा कर्ण के जीवन के सभी पक्षों का सजीव वर्णन मिलता है। कर्ण का जन्म और कुंती द्वारा परित्याग, परशुराम से शिक्षा प्राप्त करना, इंद्र को कवच-कुंडल का दान, श्री कृष्ण की चेतावनी, कुरुक्षेत्र युद्ध में कर्ण-अर्जुन का महासंग्राम, कर्ण की वीरगति इत्यादि इस खण्डकाव्य के प्रमुख प्रसंग हैं।
Rashmirathi Full Poem
रश्मिरथी प्रथम सर्ग: Rashmirathi Sarg 1
रश्मिरथी द्वितीय सर्ग: Rashmirathi Sarg 2
रश्मिरथी तृतीय सर्ग: Rashmirathi Sarg 3
रश्मिरथी चतुर्थ सर्ग: Rashmirathi Sarg 4
रश्मिरथी पंचम सर्ग: Rashmirathi Sarg 5
रश्मिरथी छठा सर्ग: Rashmirathi Sarg 6
रश्मिरथी सप्तम सर्ग: Rashmirathi Sarg 7
रश्मिरथी का अर्थ रथ पर सवार एक ऐसे योद्धा से है जिसका रथ, रश्मि अर्थात सूर्य की किरणों के तरह प्रकाशमान हो। यानी हम कह सकते हैं कि रश्मिरथी का अर्थ ‘सूर्यकिरण रुपी रथ का सवार’ अथवा ‘सूर्य की किरणों पर सवार योद्धा’ से है। यह नाम कर्ण के लिए उपयुक्त है क्योंकि वह सूर्य-पुत्र था। दिनकर जी ने इस शीर्षक के माध्यम से कर्ण के तेज, ओज, और संघर्षमय जीवन को दर्शाया है।
Rashmirathi Kavita में दिनकर जी ने कर्ण को महाभारत की कथानक से ऊपर उठाकर उन्हें नैतिकता और वफादारी की नयी भूमि पर खड़ा करके गौरव से विभूषित किया है। रश्मिरथी में दिनकर जी ने सभी पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों का परख़ नए सिरे से की है। फिर चाहे वह गुरु-शिष्य के सम्बन्ध के बहाने हो, चाहे अविवाहित मातृत्व और विवाहित मातृत्व के बहाने हो, चाहे धर्म के बहाने हो या फिर चाहे छल-प्रपंच के बहाने हो।
कर्ण के बारे में संक्षिप्त जानकारी:
कर्ण, महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास द्वारा रचित महाकाव्य महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। कर्ण का जन्म पाण्डवों की माता कुन्ती से उसी समय हो गया था जब वह अविवाहिता थीं। दरअसल कुन्ती की सेवा-भाव से प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने कुन्ती को एक वरदान दिया था जिससे वह किसी भी देवता का आवाहन करके उनसे संतान-प्राप्ति कर सकती थीं। इस वरदान का परिक्षण करने के लिए कुन्ती ने अपने महल के आँगन में सुर्य देवता का आवाह्न किया फलस्वरूप सुर्य देव ने कुंती को एक ऐसा पुत्र दिया जो कवच और कुण्डल पहने हुए जन्मा था और उसके शरीर का तेज सुर्य के समान था। इसी का नाम था, ‘कर्ण’।
चूँकि जिस समय कर्ण का जन्म हुआ उस समय कुन्ती अविवाहिता थीं इसीलिए लोकलाज से बचने के लिए उन्होंने अपने उस नवजात शिशु को एक सन्दूक में बन्द करके नदी में बहा दिया। वह सन्दूक अधिरथ नाम के एक सूत को मिला जो कभी हस्तिनापुर के सम्राट धृतराष्ट्र के सारथी हुआ करते थे। अधिरथ के धर्म-पत्नी का नाम राधा था। अधिरथ के कोई सन्तान नहीं थे। इसलिए उन्होंने इस बच्चे को अपना पुत्र मानकर उसका पालन-पोषण किया। अधिरथ ने उस बच्चे का का नाम राधा के नाम पर ‘राधेय’ रखा।
जब राधेय थोड़ा बड़ा हुआ तो वह धनुर्विद्या सीखने का हठ करने लगा। अधिरथ उसे लेकर आचार्य द्रोणाचार्य के पास गए किन्तु आचार्य द्रोण ने उसे शिक्षा देने से इनकार कर दिया क्योंकि उस समय वह केवल कुरु-वंशियों और राजकुमारों को शिक्षा देते थे। हालाँकि, उसी समय राधेय को देखकर आचार्य द्रोणाचार्य ने अधीरथ को उसका नाम कर्ण रखने का सुझाव दिया था। तभी से राधेय का नाम कर्ण हो गया।
आचार्य द्रोण के मना कर देने के बाद कर्ण गुरु परशुराम के पास गए जिनसे वह धनुर्विद्या सहित अन्य शिक्षाएँ भी प्राप्त की और एक महान योद्धा बने। आचार्य द्रोणा से सीखते हुए कौरवों और पाण्डवों तथा परशुराम से सीखते हुए कर्ण ने लगभग अपनी शिक्षा को साथ ही पूरा किया था।